क्या है मोहर्रम का इतिहास:मुहर्रम के महीने में इमाम हुसैन हो गये थे शहीद

लकमुद्दीन अंसारी की रिपोर्ट 
मोहर्रम का इतिहास कर्बला की कहानी से जुड़ा हुआ है। हिजरी संवत 60 में आज के सीरिया को कर्बला के नाम से जाना जाता था तब यजीद इस्लाम का खलीफा बनना चाहता था और उसने सबको अपना गुलाम बनाने जुल्म करना शुरू कर दिया यजीद के जुल्म और तानाशाही के सामने पैगम्बर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन और उनके भाई नहीं झुके और डटकर मुकाबला किया ऐसे कठिन वक्त में परिवार की हिफाजत के लिए इमाम हुसैन मदीना से इराक जा रहे थे तो यजीद ने उनके काफिले पर हमला कर दिया जहां यजीद ने हमला किया, वो जगह रेगिस्तान थी और वहां मौजूद इकलौती नदी पर यजीद ने अपने सिपाही तैनात कर दिए इमाम हुसैन और उनके साथियों की संख्या महज 72 थी, लेकिन उन्होंने यजीद की करीब 8 हजार सैनिकों की फौज से डटकर मुकाबला किया एक तरफ यजीद की सेना से मुकाबला था, दूसरी तरफ इमाम हुसैन के साथी भूखे प्यासे रहकर मुकाबला कर रहे थे उन्होंने गुलामी स्वीकार करने की बजाय शहीद होना जरूरी समझा लड़ाई के आखिरी दिन तक इमाम हुसैन ने अपने साथियों की शहादत के बाद अकेले लड़ाई लड़ी इमाम हुसैन मोहर्रम के दसवें दिन जब नमाज अदा कर रहे थे, तब यजीद ने उन्हें धोखे से मार दिया यजीद की भारी भरकम फौज से लड़कर इमाम हुसैन ने शहादत का जाम पी लिया।

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