इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एक टिप्पणीहापुड़ लाठीचार्ज: गरीब याचियों के आंसुओं और दर्द से ज्यादा नहीं वकीलों की हड़ताल का वजन,
विजय कुमार पाण्डेय की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश: हापुड़ लाठीचार्ज के विरोध में वकीलों के न्यायिक कार्य से विरत रहने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि गरीब याचियों के आंसुओं और दर्द के वजन से ज्यादा हड़ताल नहीं है। बुधवार को भी वकीलों ने काम नहीं किया। इस पर न्यायमूर्तियों ने निराशा जताई
उत्तर प्रदेश बार कौंसिल के आह्वान पर बुधवार को भी इलाहाबाद हाईकोर्ट, जिला अदालतों समेत अन्य न्यायिक संस्थानों में कामकाज नहीं हो सका। अधिवक्ता अपनी मांगों पर अड़े रहे। इस पर न्यायमूर्तियों ने सकारात्मक न्यायिक हस्तक्षेप के बावजूद हड़ताल जारी रखने पर निराशा जताई।
कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट के महानिबंधक ने मंगलवार से वर्चुअल मोड में सुनवाई के लिए ईमेल जारी किया था लेकिन अधिवक्ता शारीरिक या वर्चुअल मोड के जरिए उपस्थित ही नहीं हो रहे हैं। याची समाज के कमजोर वर्गों से हैं। आर्थिक रूप से पिछड़े हैं।
उनकी शिकायतों और समस्याओं के सभ्य मानवीय समाधान और समान अवसर के लिए उनकी मौन पुकार न्याय की पुकार है। इसे न केवल न्यायाधीशों, बल्कि वकीलों द्वारा भी महसूस किया और सुना जा सकता है। दुर्भाग्यवश पैरवी नहीं हो रही है। चाहे जो भी कारण हो, निश्चित रूप से उन याचियों के आंसुओं और दर्द के वजन से अधिक वजन का नहीं हो सकता, जिन्होंने न्याय प्रणाली और न्याय की संस्था में पूरा विश्वास जताया है।इसके पहले अधिवक्ता सुबह 10 बजे ही हाईकोर्ट प्रवेश द्वारों पर एकत्र हो गए और किसी को भी अंदर जाने नहीं दिया। इससे अधिवक्ता देर तक अंदर नहीं जा सके। अधिवक्ताओं की अनुपस्थिति में कोर्ट नहीं बैठी। कोर्ट ने याचियों खिलाफ कोई आदेश पारित नहीं किया है। कोर्ट ने अपने स्तर पर ही देखकर याचिकाओं का निस्तारण किया। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन सहित सभी बार एसोसिएशन ने बृहस्पतिवार को भी न्यायिक कार्य से विरत रहने का निर्णय लिया है। बुधवार को हाईकोर्ट के अधिवक्ताओं के एक गुट ने अनशन भी किया।
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